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हरियाणा सामान्य ज्ञान – मध्यकालीन हरियाणा 

  • पृथ्वीराज चौहान या पृथ्वीराज तृतीय के काल में हरियाणा में चौहानों का एकछत्र राज हो गया।
  • मोहम्मद गोरी ने 1175-86 ई. के मध्य निरन्तर संघर्ष कर पंजाब को (जिस पर महमूद के वंशज शासन कर रहे थे) अपने अधीन कर लिया।
  • 1191 ई. में पृथ्वीराज तृतीय तथा हाँसी से गोविन्द राय की संयुक्त सेना के साथ मोहम्मद गोरी की सेना का तरावड़ी नामक स्थान पर युद्ध हुआ, जिसमें गोरी पराजित हुआ। इसे तराइन का प्रथम युद्ध भी कहा जाता है।
  • 1192 ई. में गोरी तथा पृथ्वीराज तृतीय के बीच तरावड़ी में युद्ध हुआ (तराइन का दूसरा युद्ध), जिसमें पृथ्वीराज की पराजय हुई।
  • तराइन का दूसरा युद्ध में भी गोविन्द राय, पृथ्वीराज के साथ लड़ा था। इस युद्ध के बाद पृथ्वीराज को अजमेर का शासक बना दिया गया, किन्तु बाद में उसे पुनः पकड़कर मार दिया गया।
  • तराइन युद्ध के बाद भी 1192 ई. में हाँसी क्षेत्र में जाटवाँ नामक राजपूत के नेतृत्व में हरियाणा के लोगों ने गोरी की सेना के साथ युद्ध किया। किन्तु, जाटवाँ के मारे जाने पर सेना में भगदड़ मच गई। 
  • अहीरवाल क्षेत्र में रेवाड़ी के गवर्नर तेजपाल ने गोरी की सेना के साथ संघर्ष किया।
  • 1206 ई. में मोहम्मद गोरी की मृत्यु के बाद उसके गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक ने भारत में गुलाम वंश या दास वंश की नींव डाली।
  • 1206 ई. से 1626 ई. तक दिल्ली पर तुर्की और अफगानों का आधिपत्य रहा। भारतीय इतिहास में इस काल को सल्तनत काल कहा जाता है।
  • सल्तनत में पंजाब, हरियाणा सहित उत्तर भारत का बहुत बड़ा भाग शामिल था।
  • रजिया के सुल्तान बनते ही उत्तरी हरियाणा के जाटों और राजपूतों ने रजिया का विरोध किया।
  • रजिया को पराजित कर पंजाब में बन्दी बना लिया गया।
  • बन्दी बनाने वाले अमीर अल्तूनिया से रजिया ने विवाह कर दिल्ली की गद्दी पाने का असफल प्रयास किया।
  • 13 अक्टूबर, 1240 को हरियाणा में कैथल के पास रजिया और उसके पति अल्तूनिया को बन्दी बना लिया गया तथा अगले दिन ही उनकी हत्या कर दी गई।
  • सल्तनत काल में हरियाणा का सबसे छोटा इक्ता पलवल था, जिसमें 30-40 गाँव थे। 
  • जब बलबन रेवाड़ी और हाँसी का मुक्ती रहा तो उसके पास नायब मुक्ती भी थे।
  • हरियाणा में भूमिकर एकत्र करने के लिए ‘साहिबे दीवान’ होता था, जिसे सूरदास ने ‘मुसाहिब‘ कहा है।
  • फिरोज तुगलक के काल में अफीफ़ के अनुसार, हरियाणा की सिंचित भूमि से 2 करोड़ टंका कर प्राप्त होता था।
  • नासिरुद्दीन महमूद ने 1248 ई. में अपने नायब व सेनापति बलबन को मेवातियों के दमन के लिए भेजा, किन्तु बलबन असफल रहा।
  •  मेवातियों का साहस इतना बढ़ गया कि 1257 ई. में हाँसी में बलबन के काफिले पर ही हमला कर दिया।
  • 1260 ई. में बलबन ने एक बार पुनः मेवातियों पर हमला किया। भयंकर युद्ध के बाद मेवाती हार गए
  • 1263 ई. में बलबन दिल्ली का सुल्तान बना।
  • सुल्तान बनने से पूर्व बलबन हाँसी का इक्तादार (क्षेत्रीय सामन्त) रहा था।
  • 1290 ई. में जलालुद्दीन खिलजी दिल्ली का सुल्तान बना।
  • इससे पूर्व वह कैथल का मुक्ती या इक्तादार रह चुका था।
  • इक्तादार के रूप में उसका संघर्ष कलायत के निकट मंढारों से हुआ था।
  • सुल्तान बनने पर उसने उस वीर मंढार को सम्मानित किया, जिसने उसके मुँह पर वार किया था।
  • अलाउद्दीन खिलजी की कठोर व शोषक नीतियों से हरियाणा की जनता उससे नाराज थी, किन्तु दुरुस्त प्रशासन के कारण वह बगावत नहीं कर सकी।
  • तुगलकों के शासनकाल में सुल्तान फिरोज तुगलक की धर्मान्ध नीतियों के कारण हरियाणा के गोहाना क्षेत्र में सुल्तान की खिलाफत की गई थी।
  • गोहाना में हिन्दुओं द्वारा बनवाए एक नए मन्दिर को सुल्तान ने तुड़वा दिया तथा मूर्ति, पुस्तकें व अन्य सामग्री को जलाकर वहाँ पूजा करने वालों को बन्दी बनाया व अनेक व्यक्तियों को मार दिया। फिरोज तुगलक के इस कार्य के कारण हरियाणा में गोहाना के अतिरिक्त हिसार व सफीदों में भी विद्रोह हुए, जिन्हें सुल्तान ने सेना भेजकर दबाया।
  • फिरोज ने धार्मिक कट्टरता के कारण हरियाणा के मेवातियों सहित कई हिन्दुओं को जबरन मुसलमान बना लिया।
  • फिरोज तुगलक ने हिसार के प्राचीन नगर को जो उस समय खण्डहरों में विद्यमान था, उसे पुन: बसाया और इसका नाम ‘हिसार फिरोजा‘ रखा।
  •  हिसार नगर खुरासान, मुल्तान, सिरसा से दिल्ली जाने वाले प्रमुख व्यापारिक मार्ग पर पड़ता था, इस कारण यह जल्दी ही एक प्रसिद्ध नगर बन गया।
  • हिसार  जिले में ही फिरोज ने फतेहाबाद नामक एक अन्य नगर भी अपने पुत्र फतेहखाँ के नाम पर बसाया।
  • नए नगर में पानी की व्यवस्था के लिए उसने घग्घर से फौलाद (आधुनिक जोया, जिला पटियाला) नामक ग्राम के पास एक नहर निकलवाई।
  • फिरोज ने सिरसा से 12 मील की दूरी पर एक तीसरा नगर भी बसाया। इसे उसने फिरोजाबाद हरनी खेड़ा का नाम दिया।
  • कृषि  को उन्नत करने के लिए फिरोज ने यहाँ बहुत-सी नहरे निकलवाई।
  • 1388 ई. में फिरोज की मृत्यु के बाद दिल्ली में सत्ता के लिए गृह युद्ध छिड़ गया, जिसमें नासिरुद्दीन सफल रहा।
  • सल्तनत काल में हरियाणा सुल्तानी इक्ते के रूप में प्रशासित था।
  • हरियाणा सल्तनत काल में विभिन्न इक्तों में विभाजित था, जो आकार की दृष्टि से असन्तुलित थे।
  • दिल्ली का इक्ता काफी बड़ा था जबकि पलवल का इक्ता छोटा था।
  • हरियाणा में दो प्रकार के इक्ते थे। पहले प्रकार के इक्तों का प्रशासन सुल्तान द्वारा नियुक्त अधिकारी चलाते थे जबकि दूसरे प्रकार के इक्तों के प्रशासन सुल्तान के कृपापात्रों द्वारा चलाए जाते थे।
  • दूसरे प्रकार के इक्तों को जागीरी इक्ता भी कहा जाता था। सरकारी इक्तों का प्रशासक मुक्ती कहलाता था एवं उसकी नियुक्ति सुल्तान द्वारा की जाती थी।
  • इक्तों का विभाजन शिकों में था।
  • शिक एक प्रकार से तहसील के रूप में हुआ करती थी जिसका प्रशासक शिकदार कहलाता था।
  • शिको को नगरों एवं गाँवों में विभाजित किया गया। 
  • नगरों का प्रशासन सुल्तान द्वारा मनोनीत कोतवाल द्वारा चलाया जाता था। हरियाणा के हाँसी, हिसार आदि नगरों में कोतवाल हुआ करते थे।
  • ग्राम प्रशासन में सुल्तान का कोई हस्तक्षेप नहीं हुआ करता था।
  • गाँव में पंचायत होती थी और उसका मुखिया मुकद्दम कहलाता था तथा उसकी सहायता हेतु कानूनगो, पटवारी आदि हुआ करते थे।
  • 1398 ई. में ईरान के बादशाह तैमूर ने भारत पर आक्रमण कर दिया। वह राजस्थान की तरफ से हरियाणा में प्रविष्ट हुआ। 
  • सैयदों के बाद लोदी दिल्ली सल्तनत के शासक बने।
  • सिकन्दर लोदी की धर्मान्धता के कारण कलायत और जींद  में विद्रोह हुए। 
  • बहलोल लोदी के काल में हरियाणा को 1451 ई. में सल्तनत का भाग बना लिया गया तथा इब्राहिम लोदी के काल (1517-26 ई.) तक सल्तनत का अंग बना रहा।
  • जब 1526 ई. में पानीपत की पहली लड़ाई में बाबर ने इब्राहिम लोदी के विरुद्ध युद्ध किया तो यहाँ के लोग लोदी के विरुद्ध थे। इस युद्ध में बाबर ने इब्राहिम को पराजित किया। 
  • शेरशाह हरियाणा के नारनौल का निवासी था। उसका जन्म नारनौल में 1486 ई. में वहाँ के जागीरदार हसन के घर हुआ था।
  • शेरशाह का  बचपन का नाम फरीद था।
  • 1540 ई. में शेरशाह ने हुमायूँ को हराकर दिल्ली और हरियाणा पर अधिकार कर लिया।
  • 20 अप्रैल, 1526 को हुई पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहिम लोदी मारा गया तथा बाबर ने दिल्ली तथा आगरा पर अधिकार कर मुगल साम्राज्य की स्थापना की।
  • हिसार में हमीद खाँ सारंगवानी के नेतृत्व में विद्रोह हुआ, जिसे बाबर की सेना ने दबा दिया।
  • 17 मार्च, 1527 को बाबर और हसन खाँ के मध्य युद्ध हुआ, जिसमें हसन खाँ मारा गया तथा बाबर की विजय हुई।
  • हसन खाँ के पुत्र नाहर खाँ को क्षमा कर कई लाख राजस्व का परगना दे दिया गया तथा मेवात को साम्राज्य में मिला लिया गया।
  • 26 दिसम्बर, 1530 को बाबर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र हुमायूँ शासक बना।
  • उसने मेवात की सरकार अपने भाई हिन्दाल को दे दी तथा हिसार और सरहिन्द को अपने भाई कामरान के अधीन कर दिया।
  • पंजाब, काबुल और कन्धार भी कामरान के पास थे।
  • 1540 ई. में शेरशाह ने हुमायूँ को परास्त कर दिया।
  • 1545 ई. में युद्ध के समय कालिंजर में एक सुरंग फटने के कारण मारा गया। उसके उत्तराधिकारी इस्लाम शाह (1545-53 ई.) तथा आदिलशाह (1553-56ई.) अत्यन्त अयोग्य शासक सिद्ध हुए।
  • हुमायूँ की मृत्यु 26 जनवरी, 1556 को अपने पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरकर हो गयी।
  • हुमायूँ की मृत्यु के पश्चात् हेमू ने 7 अक्टूबर, 1556 को दिल्ली की गद्दी पर कब्जा कर लिया।
  • हेमू हरियाणा के रेवाड़ी का निवासी था।
  • हेमू अपनी बुद्धि एवं परिश्रम के बल पर धीरे-धीरे उन्नति करके सूर नरेश आदिलशाह के काल में वह मन्त्री और प्रधानमन्त्री तक के पदों पर प्रतिष्ठित हो गया था।
  • सूर का सेनापति बनने पर हेमू  ने 22 लड़ाइयाँ लड़ीं परन्तु वह किसी से भी पराजित नहीं हुआ।
  • 5 नवम्बर, 1556 को पानीपत के मैदान में हेमू और बैरम खां के मध्य युद्ध हुआ जिसमे हेमू के पराजय हुई। यही युद्ध पानीपत के इतिहास में द्वितीय युद्ध के नाम से जाना जाता है। 
  • मोहम्मद उगली ने बाबर की सहायता की थी, अतः उसे पानीपत का हाकिम नियुक्त किया गया।
  • हेमू भारतीय इतिहास का अन्तिम ‘विक्रमादित्य’ था।
  •  1672 ई. में औरंगजेब के फौजदार ताहिर खाँ तथा उसकी सेना को सतनामियों ने बुरी तरह हरा दिया।
  • 15 मार्च, 1672 को एक विशाल मुगल सेना बादशाहजादा मुहम्मद अकबर तथा हामद खाँ, याहिया खाँ, कमालुद्दीन आदि अनुभवी सैनिक सरदारों के साथ नारनौल हेतु रवाना कर दी।
  • 1680 ई. में राजाराम और उसके भतीजे चूड़ामन के नेतृत्व में जाटों ने शासन के खिलाफ विद्रोह किया।
    • विद्रोह का मुख्य केन्द्र सौंधी और सिनसिनी था। उन्होंने मथुरा और मेवात के परगनों पर अधिकार कर लिया।
  • 1686 ई. में होडल और पलवल पर विजय पाने के पश्चात् वे दिल्ली और आगरा के मध्यवर्ती भाग में शक्तिशाली हो गए।
  • जाटों की आन्तरिक लड़ाई खाप-युद्ध भी कही जाती है।
  • गुरु गोविन्द सिंह के पश्चात् मुगलों के विरुद्ध सिखों की सैन्य गतिविधियों का नेतृत्व बन्दा बैरागी ने किया।
  • बन्दा बैरागी ने सोनीपत के निकट सिहरीखाण्डा को अपना मुख्यालय बनाया।
  • मुगल साम्राज्य के विरुद्ध संघर्ष में बन्दा बैरागी ने सोनीपत, कैथल, थानेसर, सरहिन्द, शाहबाद व कुंजपुरा को जीत लिया था। 
  • 1710 ई. में मुगल सम्राट बहादुर शाह ने बाल व नरवाड़ी के बीच हुए तीन संघर्षों में बन्दा बैरागी को हरा दिया।
  • बन्दा बैरागी ने अम्बाला के निकट सुदौरा में अपनी स्थिति मजबूत कर ली। 
  • 1715 ई. में पंजाब के गुरदासपुर में वह बन्दी बना लिया गया और मुगल बादशाह फर्रूखसियर ने क्रूरता के साथ उसकी हत्या करवा दी।
  • औरंगजेब के काल में नन्दराम नामक एक अहीर ने (गढ़ बोलनी गाँव का) रेवाड़ी में अहीर शासन की स्थापना की।
  • नन्दराम के बाद बालकिशन वहाँ का शासक बना।
  • बालकिशन की वीरता से प्रभावित होकर मुगल सम्राट मोहम्मद शाह ने उसे शमशेर बहादुर की उपाधि प्रदान की।
  • 1739 ई. में नादिरशाह के आक्रमण के समय बालकिशन ने मोहम्मद शाह का साथ दिया। वह नादिरशाह के साथ हुए युद्ध में मारा गया।
  • बालकिशन के बाद उसका भाई गुजरमल शासक बना। मोहम्मद शाह ने उसे फौजदार का पद प्रदान किया।
  • गुजरमल ने हिसार, हाँसी, झज्जर, नारनौल और दादरी को अपने राज्य में मिला लिया।
  • बहादुर सिंह नामक व्यक्ति ने नीमराणा के ठाकुर टोडरमल की सहायता से गुजरमल को अपने घर बुलाया था उसकी हत्या कर दी।
  • इसके बाद उसका पुत्र भवानी सिंह रेवाड़ी का शासक बना। 
  • थानेसर शाहजहाँ के धर्मगुरु शेखचिल्ली का निवास स्थान था।
  • 1543 ई. में नारनौल के इलाके में वीरभान ने सतनामी पन्थ की स्थापना की।
  • दक्षिण दिशा से भरतपुर का जाट राजा सूरजमल बढ़ा और उसने फरीदाबाद के आसपास के क्षेत्र पर अधिकार कर लिया।
  • पश्चिम दिशा से जयपुर का राजा माधोसिंह आया और उसने कानोड (महेन्द्रगढ़) तथा नारनौल के क्षेत्र पर अधिकार कर लिया।
  • रेवाड़ी के अहीर चौधरी ने रेवाड़ी और शाहजहाँपुर पर कब्जा कर लिया।
  •  फर्रूखनगर के बिलोच सरदार ने गुड़गाँव, झज्जर, रोहतक के क्षेत्रों पर गहरा प्रभाव जमा लिया।
  • असदुल्ला खाँ और बहादुर खाँ ने क्रमशः तावडू और बहादुरगढ़ पर और हसनअली ने झज्जर पर अधिकार कर लिया।
  • कुतुबशाह, (जिसे गलती से रुहेला कहा जाता है) ने पानीपत और सरहिन्द के इलाके अपने कब्जे में कर लिए।
  • नजावत खाँ ने कुरुक्षेत्र और करनाल के कुछ भागों (इन्द्री, अजीमाबाद, पिपली और शाहबाद परगनों के लगभग 150 गाँवों) पर अधिकार कर लिया। उसकी राजधानी कुंजपुरा में थी।
  • मोहम्मद अमीर और हसन खाँ ने, (जोकि भट्टी वंश से सम्बन्ध रखते थे) फतेहाबाद, रानियाँ और सिरसा पर अधिकार कर लिया। 
  • मुगल सम्राट फर्रुखसियर ने गोपाल सिंह नामक जाट को फरीदाबाद का चौधरी नियुक्त किया।
  • वह फरीदाबाद से प्राप्त राजस्व का 1/6 भाग स्वयं लेकर शेष शाही कोष में जमा कर देता था। 
  • बल्लभ सिंह ने बल्लभगढ़ में किला बनवाकर वहाँ अपना मुख्यालय बनाया।
  • 1753 ई. में दिल्ली के शासक अहमदशाह ने मराठों के साथ मिलकर बल्लभगढ़ पर आक्रमण कर दिया।
  • मुगल अधिकारी इकाबत के अंगरक्षकों ने बल्लभ और उसके पुत्र की हत्या कर दी तथा किले पर अधिकार कर लिया। 
  • 15 अक्टूबर, 1754 को तत्कालीन मुगल सम्राट आलमगीर ने मराठों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए उन्हें हरियाणा का पवित्र स्थान कुरुक्षेत्र प्रदान कर दिया। 
  • रोहतक तथा हिसार के बिलौच तथा अन्य अफगान सरदार उनके आते ही भाग खड़े हुए। रेवाड़ी के अहीर शासक ने कुछ समय के लिए उनका विरोध किया, किन्तु वह भी असफल रहा।
  • जाट और राजपूतों ने बिना लड़े ही उनकी अधीनता स्वीकार कर ली।
  •  1756-57 ई. तक मराठे हरियाणा पर पूर्णतया छा गए।
  •  14 जनवरी, 1761 को अहमद शाह अब्दाली ओर मराठो  के मध्य ‘पानीपत का तीसरा युद्ध’ हुआ, जिसमें मराठा बुरी तरह पराजित हुए। इस युद्ध में मराठों का पतन हो गया।
  • अब्दाली ने वापस लौटने से पूर्व हरियाणा प्रदेश के उत्तरी भाग को, (जिसमें आजकल के अम्बाला, जींद, कुरुक्षेत्र तथा करनाल जिले सम्मिलित हैं) सरहिन्द के अपने गवर्नर जैन खाँ के अधीन कर दिया। 
  • अब्दाली ने दिल्ली राज्य का सर्वेसर्वा रुहेला सरदार नजीबुद्दौला को मान लिया था। अतः अब्दाली के लौटते ही पानीपत से नीचे के समस्त हरियाणा पर नजीब का अधिकार हो गया, जो अन्तत: यहीं तक का शासक बना रहा।
  • जनवरी, 1764 ई. में सिखों ने सरहिन्द के दुर्रानी गवर्नर जैन खाँ को हराकर अम्बाला, कुरुक्षेत्र, जींद तथा से करनाल से पानीपत तक के क्षेत्र पर अधिकार कर लिया।
  • सूरजमल ने मेवात, झज्जर और रोहतक के काफी बड़े क्षेत्र पर अधिकार कर लिया।
  • सूरजमल ने इस क्षेत्र में अपना उत्तराधिकारी जवाहर सिंह को बनाया।
  • नजीबुद्दौला के साथ संघर्ष में 1764 ई. में सूरजमल की मृत्यु के पश्चात् में नजीबुद्दौला ने सोनीपत, मेवात व फर्रूखनगर इत्यादि क्षेत्रों पर भी आक्रमण व नरसंहार करके कब्जा कर लिया।
  • 1770 ई. में नजीबुद्दौला की हिसार में मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र जाबित खाँ उत्तराधिकारी बना। 
  • 1781 ई. में जींद के राजा गजपत सिंह की सहायता से सिखों और नजफ खाँ के मध्य संधि हुई।
  • मुगल सरदार, रुहेले सरदार तथा राजस्थान के राजपूत सामन्तों ने 1787 ई. में महादजी सिंधिया को दिल्ली से निकाल दिया।
  • दिल्ली से मराठों को निष्कासित करने के पश्चात् नजफ खाँ दिल्ली का सर्वेसर्वा बन गया।
  • नजफ खाँ की सेनाओं ने जाटों से रेवाड़ी, गुड़गाँव और झज्जर, राजपूतों से कानोड (महेन्द्रगढ़) और नारनौल, बिलोचों से सोनीपत, रोहतक तथा भिवानी, भट्टियों से हिसार और सिरसा तथा सिखों से करनाल और अम्बाला छीन लिए।
  • 1789 ई. में सिन्धिया ने दिल्ली पर आक्रमण कर गुलाम कादिर को कैद कर निर्दयतापूर्वक उसकी हत्या कर दी।
  • शाहआलम प्रसन्न होकर महादजी सिन्धिया को पुत्र मानकर दिल्ली का प्रशासन उसे सौंप दिया।
  •  1794 ई. महादजी सिन्धिया की मृत्य के बाद उनका भतीजा दौलतराव सिन्धिया उसका उत्तराधिकारी बना, किन्तु वह स्थिति को सम्भालने में असफल रहा। अंग्रेजों ने इसका फायदा उठाया तथा 1803 ई. में एक युद्ध में दौलतराव को परास्त कर एक सन्धि द्वारा हरियाणा को अपने अधिकार में ले लिया।
  • जॉर्ज थॉमस द्वारा बसाए गए गाँवों की संख्या 253 थी।
  • जॉर्ज थॉमस ने सिखों को ‘सिकट्टे साहिब‘ की संज्ञा से नवाजा था।
  • थॉमस तोड़ेदार और टोपीदार बन्दूकें स्वयं बनाता था।

जॉर्ज थॉमस

  • जॉर्ज थॉमस आयरलैण्ड का निवासी था।
  • वह 1782 ई. में भारत के मद्रास में पहुँचा। कोई व्यापार या रोजगार न मिलने के कारण वह डाकुओं की तरह लूटमार करने लगा।
  • इसके बाद उसने छः महीनों तक हैदराबाद के निजाम की सेना में तोपची की नौकरी की।
  • वह दिल्ली पहुँच कर 1787 ई. में समरू बेगम की सेना में भर्ती हो गया।
  • सुमरू बेगम ने 1789 में रेवाड़ी के युद्ध में शाहआलम द्वितीय के प्राणो की रक्षा की थी।
  • जॉर्ज थॉमस समरू बेगम का विश्वासपात्र बन गया।
  • सुमरू बेगम ने उसे टप्पल की जागीर के कलेक्टर के रूप में नियुक्त कर दिया।
  • 1793 ई. में मेवात क्षेत्र के मराठा सूबेदार ने थॉमस को मेवात की व्यवस्था सम्भालने का अधिकार दे दिया।
  • जॉर्ज थॉमस के काम से प्रसन्न होकर मराठा सूबेदार खाण्डेराव ने थॉमस को झज्जर और पटौदी के कुछ गाँव जागीर के रूप में दे दिए।
  • 1797 ई. में जॉर्ज थॉमस को सहारनपुर दे दिया गया, जहाँ थॉमस ने सिखों के आतंक को समाप्त कर दिया।
  • उसने हाँसी को अपनी राजधानी तथा वहाँ एक टकसाल की स्थापना की। इस टकसाल से उसके नाम से सिक्के ढाले जाते थे, जिसे सिक्का-ए-साहिब कहा जाता था। 
  • जार्ज थॉमस ने 1798 ई. में जींद को जीत लिया।
  • अन्य सिख नरेश शाह जमान से युद्ध में व्यस्त थे। पटियाला के राजा साहिब सिंह की बहन बीबी साहिब कौर ने जींद नरेश भाग सिंह की सहायता हेतु आई थी, किन्तु थॉमस की सेना ने उन्हें पीछे धकेल दिया। अत: नाभा, पटियाला, थानेसर और लाडवा की सेना जींद आ गई। इस युद्ध के बाद थॉमस हाँसी लौट गया।
  • पैरों एक फ्रांसीसी था तथा वह जॉर्ज थॉमस को नष्ट करना चाहता था।
  • थॉमस ने जहाजगढ़ में पैरों को पराजित किया, किन्तु पैरों के दोस्त बोगेन ने थॉमस के साथ युद्ध किया। इसी समय बोगेन की सहायता के लिए सिख सेना भी आ गई। जॉर्ज थॉमस को  झज्जर के पास घेर लिया गया।
  • 23 दिसम्बर, 1801 को थॉमस ने बोगेन के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया।
  • 22 अगस्त, 1802 को बहरामपुर में थॉमस की मृत्यु हो गई। 
  • 1803 ई. में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने मराठों से उसका राज्य हासिल कर लिया।
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