हरियाणा सामान्य ज्ञान – हरियाणा का प्राचीन इतिहास
- हरियाणा का पहला प्रादेशिक नाम “ब्रह्मवर्त “ था।
- मनुस्मृति के अनुसार सरस्वती और दृषद्वती (वर्तमान में चोटांग नदी ) के मध्य स्थित प्रदेश ब्रह्मवर्त था।
- महाभारत काल में राजा कुरु के नाम पर ब्रह्मवर्त को कुरुक्षेत्र और आर्यावर्त कहा गया ।
- छठी सदी के आस पास हरयाणा को श्रीकण्ठ जनपद कहा जाने लगा ।
- नौवीं सदी में हरियाणा के लिए “हरियाला “ शब्द का प्रयोग हुआ है ।
- स्कन्दपुराण के कुमारिका खंड में हरियाला शब्द का उल्लेख मिलता है ।
- दसवी सदी में पुष्पदन्त ने महापुराण में पहली बार हरियाणाऊ शब्द का प्रयोग किया ।
- दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय ने 1327 ई. के एक शिलालेख की पंक्तियॉ में ‘हरियाणा ‘ शब्द की पुष्टि करती है ।
- तोमर शासन के समय हरियाणा क्षेत्र की राजधानी पालम के पास स्थित ढिल्लक (दिल्ली ) नगरी थी ।
- बौद्ध साहित्य से पता चलता है कि महात्मा बुद्ध ने हरियाणा में भ्रमण किया था। दिव्यावदान, मज्झिमनिकाय आदि ग्रन्थों से हरियाणा के जन-जीवन का उल्लेख मिलता है।
- दिव्यावदान में उल्लिखित अग्रोहा व रोहतक बौद्ध धर्म के प्रचार केन्द्र थे।
- कथाकोश तथा भद्र बाहुचरित में प्रथम सदी से तीसरी सदी तक के सांस्कृतिक जीवन के बारे में जानकारी मिलती है।
- अग्रोहा उस समय प्रमुख सांस्कृतिक केन्द्र था।
- प्रथम सदी में लोहाचार्य नामक जैन विद्वान् यहीं रहते थे।
- इस महाकाव्य में ‘नकुल दिग्विजयम’ शीर्षक के तहत रोहतक का वर्णन है।
- विदेशी यात्रियों-फाह्यान, ह्वेनसाँग, एरियन आदि ने अपने यात्रा विवरणों में हरियाणा के विषय में जानकारी दी है।
- अभिलेख हरियाणा से आज्ञापत्र, दानपत्र आदि के रूप में 37 अभिलेख प्राप्त हुए हैं।
- अम्बाला के पास टोपरा से अशोक का स्तम्भ प्राप्त हुआ है। ये लेख ब्राह्मी लिपि एवं संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण हैं। इन लेखों का लक्ष्य नैतिक शिक्षा प्रदान करना है।
- करनाल से प्राप्त खरोष्ठी लिपि में अंकित अभिलेख किसी तालाब के निर्माण से सम्बद्ध हैं।
- हिसार के गुजरी महल में एक स्तम्भ पर आठ अभिलेख हैं, जो आठ जगह से आने वाले भागवतों की सूचना देते हैं।
- एक अभिलेख लाओस देश में मिला है, जिसमें वहाँ के राजा देवक ने कुरुक्षेत्र की महिमा का बखान किया है।
- कपालमोचन स्थान से प्राप्त अभिलेख अधूरा है।
- टोपरा स्तम्भ पर विग्रहराज चतुर्थ के तीन लेख अंकित हैं।
- समुद्रगुप्त के सिक्के मीताथल से प्राप्त हुए है ।
- कुषाणकालीन मूर्तियों का मुख्य केन्द्र रोहतक है।
- जगाधरी के पास सुध से प्राप्त अभिलेख बारह खड़ी की लिखाई का सबसे पुराना नमूना है।
- हर्षकालीन ताम्र मुद्रांक से पुष्यभूति वंश के राजाओं का परिचय मिलता है।
- पेहोवा से प्राप्त नौंवी सदी का अभिलेख (भोजदेव का) हरियाणा के विषय में जानकारी देता है। इससे पता चलता है कि पेहोवा घोड़ों के व्यापार के लिए प्रसिद्ध था।
- अग्रोहा से प्राप्त अभिलेख में संगीत के सात स्वरों का अंकन है।
- हाँसी से प्राप्त पृथ्वीराज द्वितीय के अभिलेख में सामरिक महत्त्व की बातें बताई गई हैं।
- लाडनूँ से प्राप्त एक अभिलेख में हरियाणा की राजधानी दिल्ली बताई गई है।
- टोपरा पर खुदे विग्रहराज चतुर्थ के लेख से पता चलता है कि उसने मलेच्छों को पराजित किया था।
- बिजौलिया अभिलेख में हरियाणा के दिल्ली, हाँसी आदि नगरों का उल्लेख है।
- खोखराकोट (रोहतक) से इण्डो-ग्रीक शासकों (तीसरी सदी) के सिक्के प्राप्त हुए हैं।
- कुषाण शासकों के सोने एवं ताँबे के सिक्के मीताथल (भिवानी) से प्राप्त हुए हैं।
- खोखराकोट और औरंगाबाद से कनिष्क तथा हुविष्क के समय के सिक्के ढालने वाले साँचे प्राप्त हुए हैं।
- रोहतक से यौधेय शासकों के सिक्के ढालने के साँचे प्राप्त हुए हैं। ये साँचे मिश्रित धातु के बने हैं।
- खोखराकोट, मोहनबाड़ी, औरंगाबाद, अछेज पहाड़ीपुर, राखीगढ़ी, अग्रोहा, करनाल, सुध आदि स्थानों से मुद्रांक प्राप्त हुए हैं, जो सिक्के ढालने के काम आते थे।
- मिट्टी को पकाकर बनाई गई मूर्तियाँ धार्मिक तथा धर्मेत्तर विषयों से सम्बन्धित हैं। ये मूर्तियाँ शुंग तथा कुषाणकालीन हैं।
- जैन एवं बौद्ध तथा प्रतिहार और तोमरकालीन मूर्तियाँ हरियाणा के विभिन्न स्थलों से प्राप्त हुई हैं, जो तत्कालीन धर्मिक जन भावनाओं तथा कला की ओर इंगित करती हैं।
- रानीला और हाँसी से जैन मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं।
- थानेसर से छः किमी दूर कर्ण का किला मिला है।
- चनेटी, टोपरा, फतेहाबाद, हिसार आदि स्थानों से मौर्यकालीन स्तूप, लाट आदि के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
- पुरापाषाणकालीन उपकरण पिंजौर, धामली, सुकेतड़ी, अहियाँ, कालका के पास पपलीना, चण्डीगढ़, फिरोजपुर झिरका, कोटला (सूरजपुर) आदि स्थलों से प्राप्त हुए हैं।
- ये उपकरण छोटे, गोल और चपटे पत्थरों के रूप में हैं।
- ऐसे उपकरण सोहन घाटी (पाकिस्तान) से भी प्राप्त हुए हैं, जिससे पता चलता है कि हरियाणा में भी यह युग विद्यमान था।
- कृषि, भाषा, आवास से लोग अनभिज्ञ थे तथा उनका निर्वाह जंगली फलों से होता था।
- कोटला से प्राप्त कुल्हाड़ी से अनुमान लगाया गया है कि मनुष्य वृक्ष काटने तथा कृषि करने की दिशा में आगे बढ़ने लगे थे।
- उत्तर पाषाणकाल की प्रमुख विशेषता यह थी कि मानव कृषि करने लगा। इसका साक्ष्य हिसार जिले के सीसवाल से प्राप्त होता है। इसलिए इस सभ्यता का नाम सीसवाल सभ्यता रखा गया।
- अब तक इस सभ्यता के हरियाणा में 29 स्थलों का पता चल चुका है।
- हिसार तहसील के सीसवाल, भिवानी तहसील के मीताथल, हाँसी तहसील के राखीगढ़ी तथा सिरसा तहसील के बनावाली से उत्तर पाषाणकालीन साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
- उत्तर पाषाणकाल के मानव गाय, बैल, कुत्ता, बकरी एवं सुअर पालते थे, जिससे भोजन और व्यवसाय में सहायता मिलती थी।
- सीसवाल, मीताथल तथा राखीगढ़ी से चित्रित चूड़ियाँ एवं मनके प्राप्त हुए हैं।
- सीसवाल में अल्पमात्रा में ताँबे का प्रयोग होने लगा था।
- सीसवाल सभ्यता के लोग खाल, ऊन और रूई से वस्त्र बनाने की कला से परिचित थे।
- उत्खननों से पता चलता है कि गाँव विशेष योजना के अनुसार बनाए जाते थे।
- घरों के निर्माण में कच्ची ईंटों का प्रयोग होता था, किन्तु बनावाली से पक्की ईंटें भी प्राप्त हुई हैं।
- सीसवाल से ताँबे के हत्थे वाला गँडासा मिला है।
- स्त्री-पुरुष दोनों आभूषणों का प्रयोग करते थे। बच्चों के मनोरंजन हेतु खिलौने बनाए जाते थे।
- उत्तर पाषाणकाल में पारिवारिक व सामाजिक जीवन की शुरूआत हो चुकी थी। विवाह, देवी-देवता आदि की मान्यताएँ अस्तित्व में आ चुकी थीं।
- इतिहासकारों के अनुसार सीसवाल सभ्यता के लोग सम्भवतः नीग्रो-ऑस्ट्रेलियन जाति के थे, इन लोगों का रंग काला, कद छोटा, नाक चौड़ी तथा बाल घने व घुँघराले होते थे।
- सड़कें पूर्व से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण की ओर बनी होती थीं। मीताथल में 1.50 से 3.10 मी तक चौड़ी सड़कें प्राप्त हुई हैं।
- हरियाणा के सैन्धव स्थलों से ऐसी मुद्राएं प्राप्त हुई हैं, जिन पर बकरे, हिरण और दरियाई घोड़े अंकित हैं।
- बनावली से प्राप्त एक मुद्रा पर विचित्र पशु अंकित हैं, जिसका धड़ सिंह की तरह और सींग बैल की तरह हैं।
- कुछ विद्वानों के अनुसार हरियाणा के सैन्धववासी द्रविड़ या ऑस्ट्रेलॉयड थे, किन्तु आर सी मजूमदार के अनुसार आर्य थे।
- बनावली की खुदाई से पता चलता है कि प्रत्येक घर में आँगन, रसोईघर, स्नानघर तथा शौचालय होते थे तथा पक्की नालियाँ होती थीं।
- नगर का परकोटा बनाने के लिए 12 × 25 x 50 सेमी आकार की ईंटें प्रयुक्त हुई हैं।
- बनावली के परकोटे में 10x20x40 सेमी, 11x22x44 सेमी तथा 12×25 x 50 सेमी आकार की ईंटें प्रयुक्त हुई है।
- दौलतपुर से प्राप्त ईंटें अलग तरह की हैं, इनका परिमाप 10x36x 52 सेमी तथा 9x32x42 सेमी है।
- हरियाणा के सैन्धववासी आभूषण पहनते थे (स्त्री-पुरुष दोनों)। इनका निर्माण सोना, चाँदी, ताँबा, हाथी दाँत, नीलम, मूँगा, स्फटिक, गोमेद आदि से होता था।
- अनुमान लगाया गया है कि पशुओं की खाल से बने वस्त्रों का प्रयोग होता था।
- बैल, गाय, भैंस, बकरी, गधे, भेड़ आदि पाले जाते थे, किन्तु घोड़े के सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं मिलती।
- कई स्थानों से राख के ढेर प्राप्त होने से ऐसा लगता है कि यज्ञों का अनुष्ठान किया जाता होगा।
- हरियाणा के सैन्धववासी भूत प्रेत तथा प्राकृतिक शक्तियों में विश्वास करते थे।
बनावली
- हरियाणा के हिसार जिले में स्थित इस स्थल से दो सांस्कृतिक अवस्थाओं के अवशेष मिले हैं- हड़प्पा पूर्व और हड़प्पाकालीन।
- बनावली की खुदाई वर्ष 1973-74 में आर एस विष्ट ने करवाई।
- यहाँ से हड़प्पा संस्कृति के तीन स्तर प्रकाश में आए हैं- प्राक् सैन्धव, विकसित सैन्धव तथा उत्तर सैन्धव ।
- यहाँ से पकी मिट्टी का बना हल का एक प्रतिरूप प्राप्त हुआ है तथा अच्छे किस्म के जौ मिले हैं।
- इसके अतिरिक्त यहाँ से बर्तन, गोलियाँ, मनके, मनुष्यों एवं पशुओं की मूर्तियाँ, ताँबे के बाणा, चर्ट की फलक, कार्नीलियन के मनके आदि मिले हैं।
- बनावली की नगर योजना शतरंज के जाल के आकार की बनाई गई थी। सड़कें न तो सीधी मिलती थीं न ही एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं।
भगवानपुर
- यह स्थल हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले में सरस्वती नदी के दक्षिणी किनारे पर स्थित है।
- इसका उत्खनन जीपी जोशी ने करवाया था।
- इस स्थल से सफेद, काले तथा आसमानी रंग की काँच की चूड़ियाँ, ताँबे की चूड़ियाँ इत्यादि प्राप्त हुई हैं
राखीगढ़ी
- यह स्थल हरियाणा के हिसार जिले में दृशद्वती नदी के मैदानी इलाके में अवस्थित है।
- इसके उत्खनन से दो स्पष्ट संस्कृतियों की पहचान हुई है- प्रारम्भिक हड़प्पाकालीन एवं विकसित हड़प्पाकालीन।
- इस स्थल से जौ, गेहूं एवं चावल के दाने प्राप्त हुए हैं।
- ईंटों के बने अन्नागारों के मिलने से वहाँ अनाज के पर्याप्त उत्पादन एवं भण्डारण व्यवस्था का पता चलता है।
- मृतकों को उत्तर-दक्षिण की स्थिति में लिटाकर लम्बे गड्ढे में दफनाया जाता था तथा मृतक के सिर के पीछे बर्तन रखे जाते थे।
कुणाल
- यह स्थल हरियाणा के हिसार जिले के रतिया तहसील(वर्तमान में सिरसा जिला ) में सरस्वती नदी (अब विलुप्त) के तट पर स्थित था।
- इस स्थल की खुदाई वर्ष 1986 के बाद जे एस खत्री तथा एम आचार्य ने करवाई।
- यहाँ के एक मकान से सोने एवं चाँदी के गहनों का खजाना मिला है, जिसे चाँदी के पत्तर में लपेटकर लाल रंग के गोलाकार बर्तन में रखकर जमीन में गाड़ा गया था।
- ताँबे की वस्तुओं में कुण्डलित अंगूठियाँ, उल्टे वी (A) आकार के बाणाग्र, चपटी कुल्हाड़ी, मछली पकड़ने के काँटे तथा भाले के अग्रभाग प्राप्त हुए हैं।
- इस स्थल के लोग कृत्रिम रूप से जमीन के स्तर को ऊँचा उठाकर अपना आवास बनाते थे।
- हरियाणा में चित्रित धूसर मृद्भाण्ड संस्कृति, जो आर्यों की संस्कृति थी, वाले लगभग 300 स्थलों का पता चला है।
- भगवानपुर, थानेसर में राजा कर्ण का किला, सुध, दौलतपुर आदि स्थलों की खुदाई से प्राप्त सामग्रियाँ ऋग्वैदिक हड़प्पाई आर्य के बारे में बताती हैं।
- आर्य ऋषियों ने पवित्र सरस्वती नदी के किनारे वैदिक ऋचाओं की रचना की थी।
- जैमिनीय ब्राह्मण से विदित होता है कि भरत सिन्धु किनारे के निवासी थे। धीरे-धीरे उन्होंने भारत के विस्तृत भू-भाग पर अधिकार कर लिया।
- दुष्यन्त का पुत्र भरत अपनी राजधानी हस्तिनापुर ले गया। उसकी सीमा पंजाब से अयोध्या तक विस्तृत थी।
- उसने सात्वतों को परास्त किया। इसी के वंशज की शाखा कुरु कहलाई।
- वैदिक ग्रन्थों में कुरुओं का उल्लेख पांचालों के साथ आया है।
- हस्तिनापुर के राजा ने पांचालों पर स्वामित्व जमा लिया तथा अपने राज्य को कुरुक्षेत्र या ‘कुरुजांगल’ नाम दिया। उसके उत्तराधिकारी कौरव कहलाए।
- मध्य एशिया, बख्त और ईरान से कुरुओं के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
- रोमिला थापर के अनुसन्धानों से यह पता चलता है कि यह द युद्ध लगभग 900 ई.पू. में हुआ होगा।
- सूर सागर के प्रथम स्कन्द के अनुसार यादवों की आपसी लड़ाई और श्रीकृष्ण के दिवंगत होने के कारण पाण्डवों ने द्रौपदी सहित उत्तर दिशा की यात्रा की तथा योगमार्ग से प्राण त्याग गए।
- उत्तर वैदिक काल में हरियाणा में पाण्डवों ने राजसूय यज्ञ किया, जिससे विस्तारवादी नीति को बल मिला।
- महाभारत में उल्लेख है कि नकुल ने अपने अभियान में रोहतक, सिरसा आदि क्षेत्र जीते। इस काल में कृषि के लिए नए औजारों का निर्माण हुआ।
- हस्तिनापुर से चावल व गन्ने के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
- मौर्यो के पश्चात् हरियाणा में यौधेय गण अस्तित्व में आया। यौधेय गण का उल्लेख महाभारत के द्रोण पर्व में भी है।
- पाणिनी ने यौधेयों को आयुद्धजीवी अर्थात् युद्ध प्रेमी कहा है।
- 150 ई. पू. के जूनागढ़ शिलालेख में यौधेय गण का उल्लेख यह स्पष्ट करता है कि इस काल में भी यौधेय गण का महत्त्व था।
- यौधेय गण की शक्ति व राज्य विस्तार की जानकारी हरियाणा के विभिन्न स्थानों से मिले उनके सिक्कों से भी मिलती है।
- सर्वप्रथम 1834 ई. में कैप्टन कोटले को हरियाणा की सीमा के निकट उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले से यौधेयों के सिक्के मिले थे।
- इसी प्रकार के सिक्के कनिघम को सोनीपत से मिले थे।
- सिरसा, हाँसी, हिसार, खरखौदा, रोहतक, गुडगाँव व करनाल नामक स्थान से यौधेयों के सिक्के ढालने के सुन्दर व गोलाकार साँचे प्राप्त हुए हैं।
- यौधेयों की टकसाल का कार्य रोम की समकालीन टकसालों से भी उत्तम माना जाता है।
- यौधेय गण की राजधानी प्रकृतनाक (वर्तमान नौरंगाबाद) थी।
- यौधेयों का कुषाणों से कई बार संघर्ष हुआ था। कुषाण शासक कनिष्क ने यौधेय गण पर अधिकार कर लिया था।
- यौधेयों के विजयगढ़ लेख से पता चलता है कि राजा ही महासेनापति भी होता था।
- यौधेयों का उल्लेख रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख (द्वितीय शताब्दी ई.) तथा समुद्रगप्त की प्रयाग प्रशस्ति (चतुर्थ शताब्दी ई.) में भी है।
- प्रयाग प्रशस्ति के उल्लेख के अनुसार समुद्रगुप्त द्वारा पराजित गणराज्यों में यौधेय गण भी शामिल था। इससे पता चलता है कि चतुर्थ शताब्दी ई. तक यौधेय राज्य ‘गणराज्य’ के रूप में ही था।
- ई. पू. प्रथम सदी में यौधेयों को विदेशी आक्रमण का सामना करना पड़ा, जिसमें कुषाण शासक कडफिसस के समय कुषाण और यौधेयों में प्रबल संघर्ष हुआ।
- कुषाणों को पराजित करने के उपलक्ष्य में यौधेयों ने अपने सिक्कों पर यौधेयगणस्त्र जय‘ तथा ‘यौधेयानां जय मन्त्रधराणान् अंकित करवाए।
- यौधेयों के कुछ सिक्कों पर ‘ब्राह्मण्यदेव‘ शब्द अंकित है।
- प्रशासन को सुचारु ढंग से चलाने के लिए यौधेयों ने दो प्रशासकीय खण्ड बनाए-एक रोहतक तथा दूसरा सिरसा।
- हिसार जिले के अग्रोहा और बरवाला से प्राप्त सिक्कों से पता चलता है कि यहाँ अग्र गणराज्य था, जिसकी राजधानी अग्रोहा थी।
- अग्र गणराज्य का उल्लेख ‘अष्टाध्यायी’, ‘महाभाष्य’, ‘बौधायन सूत्र’ इत्यादि ग्रन्थों में भी मिलता है।
- ऐसी मान्यता है कि भारत के अग्रवाल वैश्यों का उद्गम अग्रोहा था तथा अग्रसेन ने इस नगर को बसाया था।
- मौर्योत्तर काल में अग्र गणराज्य यौधेयों के साथ मिल गया था।
- वर्तमान अम्बाला जिले में कुणिन्द गण का क्षेत्र था। यहाँ भी गणराज्य स्थापित था। इनके बारे में अधिक जानकारी का अभाव है।
- कुछ स्रोतों व सिक्कों से यह जानकारी मिलती है कि यौधेयों व कुणिन्दों ने मिलकर कुषाणों को पराजित किया था।
- अर्जुनायन गणराज्य हरियाणा के महेन्द्रगढ़ जिले व कुछ क्षेत्र राजस्थान में फैला हुआ था।
- पाणिनी की ‘अष्टाध्यायी‘ में भी अर्जुनायन गण का उल्लेख मिलता है।
- कुषाणों के साथ युद्ध में अर्जुनायन गण ने भी यौधेयों का साथ दिया था।
- प्रयाग प्रशस्ति के अनुसार समुद्रगुप्त ने अपने आर्यावर्त अभियान में अर्जुनायन गणराज्य को भी पराजित कर अपने अधिकार में ले लिया था।
- प्रयाग प्रशस्ति के अनुसार, यौधेय, अर्जुनायन इत्यादि गणराज्यों को गुप्त साम्राज्य में मिलाने के बाद, हरियाणा का अधिकांश क्षेत्र गुप्तों के शासन में रहा।
- पांचवीं सदी के उत्तरार्द्ध में हूणों के आक्रमण से गुप्त साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया।
- हरियाणा का एक बड़ा भाग श्रीकण्ठ जनपद कहलाने लगा, यह नाम किसी नागवंशीय शासक द्वारा दिया गया था।
- छठी शताब्दी के प्रारम्भ में पुष्यभूति नामक एक सेनानायक ने थानेसर में एक स्वतन्त्र राज्य की स्थापना की।
- ‘हर्षचरित‘ में पुष्यभूति की शक्ति और योग्यता की प्रशंसा की गई है।
- पुष्यभूति के पश्चात् इस वंश में तीन अन्य राजाओं के पश्चात् छठी शताब्दी के अन्त में एक शक्तिशाली राजा प्रभाकरवर्द्धन हुआ।
- 605 ई. में प्रभाकरवर्द्धन की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र राज्यवर्द्धन थानेसर का शासक बना।
- प्रभाकरवर्द्धन ने हूणों को पराजित किया तथा अन्य छोटे राज्यो सिन्धु, गुर्जर, गान्धार, लाट एवं मालवा को भी जीत लिया।
- हर्ष काल में पुलकेशिन द्वितीय दक्षिण देश का अधिराजा कहलाता था। उसने हर्ष को 634-35 ई. में नर्मदा के तट पर पराजित किया।
- दिवाकर के प्रभाव से हर्ष हीनयान बौद्ध बन गया, किन्तु बाद में ह्वेन्सांग के प्रभाव से महायान में आस्था व्यक्त की।
- राज्यवर्द्धन की बहन राज्यश्री का विवाह कन्नौज के मौखरि शासक ग्रहवर्मा से हुआ ।
- राज्यवर्द्धन के शासक बनते ही गौण्ड के शासक शशांक ने कन्नौज पर आक्रमण करके ग्रहवर्मा को मार दिया व कन्नौज पर अधिकार कर लिया। राज्यश्री ने भागकर जंगल में शरण ली।
- राज्यवर्द्धन ने कन्नौज पर आक्रमण किया, किन्तु मारा गया।
- राज्यवर्द्धन की मृत्यु के बाद 606 ई. में हर्षवर्द्धन थानेसर का शासक बना।
- राज्यश्री की मृत्यु के बाद 641 ई. में हर्ष कन्नौज का भी शासक बन गया और उसने अपनी मुख्य राजधानी कन्नौज को ही बना लिया।
- बाद में हर्ष ने शशांक को तथा वल्मी के शासक ध्रुवसेन को हराकर अपने राज्य का विस्तार पूर्व और पश्चिम में किया।
- दक्षिण की ओर उसका विस्तार तब रुक गया, जब हर्ष चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय से हार गया।
- हर्षचरित का लेखक बाणभट्ट हर्ष का दरबारी कवि था। इसके अतिरिक्त भर्तृहरि, जयसेन, दिवाकर व मयूर इत्यादि विद्वान् भी उसके दरबार में थे।
- चीनी यात्री ह्वेनसाँग भी हर्ष के दरबार में आया था। उसने थानेसर और कन्नौज सहित भारत के कई नगरों की यात्रा की थी।
- हर्ष काल में राज्य प्रान्तों में विभाजित था तथा प्रान्त को भुक्ति कहते थे।
- हर्ष काल में भुक्ति का विभाजन विशों (जिलों) में था।
- हर्ष काल में विशों का विभाजन पाठक या पेठ (तहसील) में किया गया था।
- हर्ष काल में गाँव प्रशासन की सबसे छोटी इकाई थी।
- हर्ष काल में भुक्ति का प्रमुख अधिकारी उपरिक तथा विश का प्रमुख अधिकारी विशपति होता था।
- हर्ष काल में तहसीलदार को पाठकपति कहा जाता था।
- हर्ष काल में कुल उपज का छठा भाग कर के रूप में लिया जाता था।
- हर्ष काल में कर भुगतान की तीन विधियाँ प्रचलित थीं
- भागविधि (अन्न के रूप में),
- हिरण्यविधि (मुद्रा के रूप में)
- बलिविधि (उपहार के रूप में)
- सातवीं सदी की समाप्ति के समय गउडवहो (वाक्पति रचित) के अनुसार कन्नौज शासक यशोवर्मा ने दिग्विजय अभियान चलाया।
- हर्ष काल में समाज में बाल विवाह प्रथा थी। सती प्रथा प्रारम्भ हो चुकी थी, किन्तु इसके लिए विवशता नहीं थी।
- प्रभाकरवर्द्धन की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी यशोमती स्वेच्छा से सती हो गई।
- कन्नौज शासक यशोवर्मा ने दिग्विजय अभियान के तहत वह मरुभूमि पार कर श्रीकण्ठ जनपद ” कुरुक्षेत्र का दर्शन कर अयोध्या चला गया। इससे पता चलता है कि हरियाणा कन्नौज शासक यशोवर्मा के राज्य का अंग था।
- कश्मीर के शासक ललितादित्य ने यशोवर्मा को पराजित कर दिया। उसके कश्मीर लौटने पर हरियाणा में आयुद्ध वंश का शासन स्थापित हुआ।
- नौवीं सदी में हरियाणा क्षेत्र प्रतिहार शासक नागभट्ट द्वितीय (805-833 ई.) के अधीन होने की जानकारी मिलती है।
- 882 ई. के पेहोवा अभिलेख से पता चलता है कि मिहिरभोज (836-855 ई.) के समय में पेहोवा एक महत्त्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र था, जो घोड़ों के व्यापार के लिए प्रसिद्ध था।
- नवीं शताब्दी के अन्त में राज्य में तोमरों के शासन का पता चलता है।
- महेन्द्रपाल प्रथम के पेहवा अभिलेख से जानकारी मिलती है कि तोमरों में जाडल पहला राजा था। जाडल तथा उसके बाद के शासकों आपृच्छदेव (गोग्ग) व पीपलराज (897-919 ई.) की मुद्राएँ इस क्षेत्र से मिली हैं।
- हर्षनाथ द्वारा स्थापित 973 ई. के एक अभिलेख से पता चलता है कि शाकम्भरी के चौहानों के साथ हुए संघर्ष में तोमर पराजित हो गए थे।
- पीपलराज को चौहान नरेश चन्दन ने हराकर अपनी अधीनता में करद राजा बनाया।
- गोपाल के उत्तराधिकारी सुलक्षणपाल (997-1005 ई.) के सिक्के प्राप्त होना इस बात का प्रमाण है कि सुलक्षणपाल तोमर वंश का एक स्वतन्त्र शासक था।
- अजयपाल (1005-27 ई.) इस भू-भाग का शासक बना। इसी समय इस भू-भाग पर महमूद गजनवी का आक्रमण हुआ था।
- प्रयाग सम्मेलन में हर्ष ने पहले दिन बुद्ध, दूसरे दिन सूर्य की तथा तीसरे दिन शिव की पूजा की।
- महमूद के बाद उसके उत्तराधिकारी मसूद (1030-40 ई.) ने हरियाणा में हाँसी दुर्ग जीतने हेतु 1037 ई. में हाँसी पर आक्रमण कर दिया।
- 12 दिनों तक चले इस युद्ध में तोमर शासक कुमारपाल देव (1021-51 ई.) पराजित हुआ।
- इसके बाद सोनीपत, कुरुक्षेत्र भी मसूद के हाथ में चला गया किन्तु 1041 ई. में मसूद की मृत्यु होने पर हरियाणा पुनः स्वतन्त्र हो गया।
- कुमारपाल देव ने मसूद के उत्तराधिकारी मादूद को थानेसर में पराजित किया।
- तोमर शासक अनंगपाल द्वितीय (1051-81 ई.) की मृत्यु के बाद तेजपाल (1081-1105 ई.) के काल में मादूद के उत्तराधिकारी इब्राहिम ने हरियाणा को जीतकर गजनी साम्राज्य में मिला लिया।
- शाकम्भरी के चौहान शासक अरुणराज ने 1139 ई. में हरियाणा पर हमला कर तोमरों को सत्ता से हटा दिया।
- 1151 ई. में चौहान शासक विग्रहराज चतुर्थ ने तोमरों को पराजित कर दिल्ली एवं हाँसी पर अधिकार कर लिया तथा हरियाणा पर शासन स्थापित हो गया।
- पृथ्वीराज तृतीय ने अन्तिम रूप से तोमरों को समाप्त कर दिया।
- 1151 ई. में विग्रहराज चतुर्थ ने भादानकों पर आक्रमण कर उन्हें पराजित किया।
- पृथ्वीराज द्वितीय तथा सोमेश्वर के काल में भादानकों ने पुनः स्वतन्त्रता प्राप्त कर ली।
- पृथ्वीराज तृतीय ने 1182 ई. में भादानकों पर आक्रमण कर उन्हें परास्त किया तथा उनके राज्य को अपने राज्य में मिला लिया।