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  • हरियाणा उत्तर भारत में एक भूमि से घिरा राज्य है।
  • हरियाणा 27°39′ से 30°35‘ उत्तर अक्षांश और 74°28′ और 77°36′ पूर्व देशांतर के बीच फैला हुआ है ।
  • हरियाणा राज्य की सीमा उत्तर में पंजाब और हिमाचल प्रदेश और पश्चिम और दक्षिण में राजस्थान से लगती है।
  • यमुना नदी उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के साथ अपनी पूर्वी सीमा को परिभाषित करती है।
  • हरियाणा दिल्ली को तीन तरफ से घेरता है, जिससे दिल्ली की उत्तरी, पश्चिमी और दक्षिणी सीमाएँ बनती हैं।
  • हरियाणा भाषाई आधार पर 1 नवंबर 1966 को पूर्वी पंजाब राज्य से अलग किया गया था।
  • हरियाणा संयुक्त पंजाब के 35.18% भाग पर बसा हुआ है 
  • हरियाणा राज्य का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 44212 KM2 (17070 SQ MI) है, जो देश के भौगोलिक क्षेत्रफल का 1.4% है।
  • हरियाणा राज्य की राजधानी चंडीगढ़ है ।
  • हरयाणा राज्य में वन आवरण 1584 KM2 है । जो भौगोलिक क्षेत्र का 3.6 % है 
  • कर्नल M.L. भार्गव के अनुसार हरियाणा के दक्षिणी भाग को समुद्र छूता था । 
  • सर्व प्रथम हरियाणा शब्द का प्रयोग “ऋग्वेद” में “रज हरियाणे” के रूप में हुआ है । 
  • वेदों में उल्लेखित सरस्वती तथा दृषद्वती नदियों के मध्य स्थित भूभाग “ब्रह्मावर्त” कहलाता था ।  
  • जैसे की नाम से ही पता चलता है की हरियाणा दो शब्दों के मेल से बना हुआ लगता है जैसे “हरि का अरण्य” , “श्री कृष्ण की क्रीड़ा स्थली” , “हर का अयन” , “भागवान शिव का घर” , “हरित अरण्य” अथार्तहरा भरा वन । 
  • हरियाणा राज्य गंगा- सिंधु मैदान का उत्तर पश्चिम हिस्सा है । 
  • हरियाणा का लगभग 93.76% भाग समतल और तरंगित मैदान है । 
  • समतल और तरंगित मैदान को घग्घर -यमुना का मैदान के नाम से जाना जाता है । 
  • घग्घर -यमुना का मैदान की ऊंचाई 300 मीटर से भी कम है ।
  • घग्घर -यमुना का मैदान का 68.21 % भाग सपाट समतल है । 
  • घग्घर -यमुना का मैदान का 25.55% भाग तरंगित और उर्मिल (उबड़ – खाबड़ ) है । 
  • हरियाणा राज्य का 3.09% भाग पहाड़ी और चट्टानी है । 
  • हरियाणा राज्य के लगभग 1.67% भाग पर शिवालिक पर्वत श्रेणियाँ स्थित है । 
  • शिवालिक पर्वत श्रेणियाँ की ऊंचाई 300-400 मीटर तक है । 
  • शिवालिक पर्वत श्रेणियाँ पंचकूला ,अम्बाला ,यमुनानगर जिलों में स्थित है । 
  • शिवालिक पर्वत श्रेणियाँ के क्षेत्र को गिरिपाद का मैदान (Piedmont Plain) भी कहते है । 
  • हरियाणा की सबसे ऊँची मोरनी पहाड़ियाँ (Morni Hills) है । 
  • मोरनी पहाड़ियाँ (Morni Hills) की ऊंचाई 1220 मीटर है । 
  • मोरनी पहाड़ियाँ (Morni Hills) की सबसे ऊँची चोटी करोह (Karoh ) है । 
  • सबसे ऊँची चोटी करोह कि ऊंचाई 1514 मीटर है । 
  • उच्च शिवालिक श्रेणियाँ की ऊंचाई 600 मीटर से अधिक है । 
  • निम्न शिवालिक श्रेणियाँ की ऊंचाई 400- 600 मीटर है ।
  • कुरुक्षेत्र »  यह क्षेत्र 28°30′ से 30°  उत्तरी अक्षांशों तथा 76°21′ से 77° पूर्वी देशान्तरों के मध्य विस्तृत है। इसमें पूर्व का करनाल जिला और जीन्द के क्षेत्र सम्मिलित हैं  
  • हरियाणा » 29°30′ उत्तरी अक्षांशों के मध्य विस्तृत भौगोलिक क्षेत्र में हांसी, फतेहाबाद व हिसार तहसीलें, भिवानी और रोहतक जिलों के भाग सम्मिलित हैं। जाटों की अधिकता के कारण इसे जटियात क्षेत्र कहा जाता है। 
  • भटियाना »  यह क्षेत्र फतेहाबाद और भाटू तहसीलों के मध्य स्थित है। इस पर प्राचीन काल से भाटी राजपूतों का आधिपत्य रहा है। 
  • गिरिपाद मैदान :  शिवालिक श्रेणियों के दक्षिण में 25 किमी चौड़ी पट्टी के रूप में गिरिपाद यमुना नदी से घग्घर नदी तक युमनानगर, अम्बाला और पंचकूला जिलों में विस्तृत है।  
  • गिरिपाद मैदान को स्थानीय भाषा में ‘घर’ (Ghar) कहा जाता है।  
  • बालू के टिब्बे युक्त मैदान : यह बालू मैदान पश्चिम में हरियाणा व राजस्थान की सीमा के साथ-साथ विस्तृत हैं। यह मैदान सिरसा जिले के दक्षिणी भाग से प्रारम्भ होकर हिसार, भिवानी, महेन्द्रगढ़, रेवाड़ी तथा झज्जर जिलों तक विस्तृत हैं।
  • राजस्थान से आने वाली गर्म शुष्क पवनों द्वारा लगातार कच्छ की ओर से लाई गई बालू मिट्टी के निक्षेपण से विशाल क्षेत्र में ‘बालुका टीले’ का निर्माण हुआ है। 
  •  इन टीलों के मध्य में निम्न स्थल ‘ताल’ (Tals) पाए जाते हैं, जिनमें वर्षा ऋतु में जल भर जाने से अस्थायी छिछली झीलें बन जाती है जिन्हें ‘ठूंठ’ या ‘बावड़ी’ कहते हैं। 
  • अनकाई दलदल : हरियाणा के पश्चिमी जिले सिरसा के दक्षिणी भाग में अनकाई दलदल पाया जाता है। यह राज्य का सबसे कम ऊँचाई वाला भू-भाग है, जो समुद्रतल से 200 मी से कम ऊँचाई पर स्थित है। 
  •  उत्तर-पूर्वी भाग में शिवालिक तथा दक्षिण एवं दक्षिण-पश्चिम में अरावली की अवशिष्ट पहाड़ियाँ एवं बालू के टिब्बे युक्त मैदान (भू-क्षेत्र एवं खंडहीन) इन दोनों के मध्य पथरीला प्रदेश, पर्वतपाद मैदान, जलौढ़ मैदान, बाढ़ का मैदान, तरंगित बालू का मैदान तथा अनकाई दलदल की भू-इकाइयाँ हैं जो मिलकर बड़े मैदान का निर्माण करती हैं।
  •  मध्य मैदानी भाग के दक्षिण व दक्षिण-पश्चिम में अरावली की अवशिष्ट पहाड़ियाँ स्थित हैं जिनकी ऊँचाई 300 मीटर व इससे अधिक है। 
  • उत्तर एवं पूर्व में शिवालिक पहाड़ियाँ तृतीय उत्थान के समय निर्मित हुई जो 400-900 मीटर ऊँचाई की हैं।  
  • इनकी रचना रेत, चीका, बजरी तथा कॉग्लोमिरेट से हुई है। इन पहाड़ियों से घग्घर, मारकण्डा, टांगरी तथा सरस्वती नदियाँ निकलती हैं। 
  •  घग्घर-यमुना दोआब का मैदान बहुत बड़े भू-भाग को घेरे हुए है। शिवालिक तथा अरावली के मध्य यह जलोढ़ का मैदान है। इसका ढलान मन्द है जो उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर है। समुद्र तल से इसकी औसत ऊँचाई 220-280 मीटर है। इस क्षेत्र में मारकण्डा, सरस्वती, चौतंग नदियाँ बहती हैं। 
  • “ यमुना नदी हरियाणा के पूर्वी किनारे पर यमुनानगर से फरीदाबाद तक बाढ़ के मैदान का निर्माण करती है। यह तरंगित मैदान है। 
  •  उत्तर-पश्चिमी भागों में घग्घर तथा मारकण्डा भी इसी तरह बाढ़ के मैदान का निर्माण करती रही हैं। 
  • “ राजस्थान की सीमा के साथ लगता दक्षिण-पश्चिमी भाग बालूमय मैदान है। यह सिरसा जिले के दक्षिणी भागों से शुरू होकर फतेहाबाद, हिसार, भिवानी, महेन्द्रगढ़, रेवाड़ी और झज्जर जिलों तक फैला हुआ है। 
  •  हरियाणा के इस क्षेत्र में मरुस्थल के प्रसार को रोकने के लिए हरी पट्टी का निर्माण किया गया है ताकि बालू रेत के विस्तार को रोका जा सके। 
  • महाद्वीपीय स्थिति, उत्तर-पश्चिमी विक्षोभ एवं दक्षिण-पश्चिमी मानसून जलवायु का निर्धारण करते हैं।  
  •  राज्य की सामान्य वर्षा 300 सेमी (दक्षिणी-पश्चिमी भू-क्षेत्र) से 1100 सेमी (शिवालिक की पहाड़ियाँ) तक होती है।  
  • साधारणत: गर्मियों में अनेक बार दिन का तापमान 48 डिग्री सेल्सियस तथा सर्दियों में रात का तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है। तापमान में यह भीषणता दक्षिणी-पश्चिमी भागों में अधिक प्रभावशाली है। 
  • प्रदेश में शुष्क, अर्धशुष्क तथा उप-आई, उष्ण कटिबन्धीय जलवायु क्रमशः दक्षिण से उत्तर की ओर पाई जाती है। 
  • कुल वर्षा का 80 प्रतिशत भाग जुलाई से सितम्बर के मध्य तथा 10-15 प्रतिशत भाग पश्चिमी विक्षोभों के कारण जनवरी से मार्च के मध्य होता है। 
  • उष्ण कंटीले वन (ट्रॉपीकल थोर्नी फोरेस्ट) “ये वन महेन्द्रगढ़, रेवाड़ी, गुड़गाँव, भिवानी, यमुनानगर, कैथल, हिसार, करनाल और सोनीपत के मैदानी भाग में पाए जाते हैं।
    • जहाँ औसत वर्षा 20-40 सेंटीमीटर होती है। इनमें शीशम, नीम, पीपल, बहु रोहिड़ा, लसूडा, जामुन, इमली, सहजन तथा सेमल आदि वृक्षों की बहुतायत रहती है। 
  • उपोषण चीड़ वन (सब ट्रॉपीकल पाइन फोरेस्ट)  “अम्बाला, पंचकूला, यमुनानगर और हिमाचल प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्र में पाइन वन मिलते हैं जहाँ औसत वर्ष 100 सेंटीमीटर के आसपास होती है। यहाँ चौड़, पाहून वृक्षों की बहुतायत होती है। इनके अतिरिक्त चीड़, कचनार, जिंगन, अमलतास जामुन, महुआ, बहेड़ा, तनु आदि वृक्ष भी उगते हैं।
  • हरियाणा को सम्पन्नता उपजाऊ मिट्टी, समतल धरातल, सुदढ़ सिंचाई व्यवस्था तथा कृषि अनुकूल जलवायु पर निर्भर है। 
  • केवल उत्तर तथा दक्षिण की पहाड़ियों को छोड़ समस्त क्षेत्र की मिट्टी लगभग उपजाऊ किस्म की है। 
  •  धरातलीय बनावट के आधार पर तीन प्रकार के मिट्टी क्षेत्र हैं- पहाड़ी, मैदानी एवं रेतीला पहाड़ी क्षेत्र के साथ पर्वतपदीय मैदान जहाँ बालू, बजरी तल, रेतमय आदि निम्न कोटि की मिट्टी है।
  • नारायणगढ़ तथा कालका तहसील में ऐसे मिट्टीयुक्त भू-क्षेत्र को ‘पाहर’ तथा जगाधरी में ‘कण्डी’ के नाम से पुकारा जाता है।
  • मस्स्थली सीमा के साथ सिरसा से नारनौल तक बालूका प्रधान दोमट मिट्टी पाई जाती है। यहाँ वायु द्वारा मिट्टी का अपरदन होता है। यह मोटे अनाजों के लिए उपयुक्त है। यहाँ पर शुष्क कृषि पद्धति अपनाई जा रही है।
  • उपरोक्त दोनों मिट्टियों के मध्य जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है। प्रमुख खाद्यान्न फसलों में गेहूं और धान तथा अन्य में कपास, ईख आदि फसले उगाई जाती हैं। नदियों के साथ-साथ खादुर तथा किनारों से दूर बांगर में जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है।
  •  हिमालय पर्वत की तलछट चट्टानों को काटकर नदियों ने अपने मार्ग बदल-बदल कर घग्घर यमुना के उपजाऊ मैदान का निर्माण किया है। दिल्ली समूह की पुराना क्रम की चट्टानें खनिजों के लिए प्रसिद्ध हैं। इस क्रम की चट्टानें नारनौल क्षेत्र में ‘खनिजों का संग्रहालय’ के नाम से राज्य में विख्यात हैं।
वृहद स्तर पर काल अवधि तथा जीवन अवस्था के अनुसार भू-गर्भिक काल में परिवर्तन इस प्रकार है। 
महाकल्प चट्टानें कालावधि जीवन लक्षण 
हेडियन भू-गर्भ में 4600 से 4000 ईसा पूर्व तक 
आर्केयिन (Archean) भू-पर्पटी का आधार तल आग्नेय चट्टानों से निर्मित आलिंद एवं शिस्ट 4000 से 2500 ईसा पूर्व तक सूक्ष्म बैक्टीरिया 
प्रोटेरोजोइक आधारत तथा उनके ऊपर प्रथम परत 2500 से 570 ईसा पूर्व तक प्रारम्भिक जीवन 
फानेरोजोइक चट्टानें, जिनमें संरक्षित है कठोर अंग, जीवन से संबंधित 570 ईसा पूर्व से आज तक दृश्य जीवन 
प्रशासनिक इकाई  संख्या 
मण्डल (DIVISION) 06 
जिले (DISTRICTS)22
उप – मण्डल (SUB- DIVISIONS)72
तहसीले (TEHSIL)93
उप – तहसीले (SUB- TEHSIL)50
खण्ड (BLOCK)140
कस्बे (TOWN)154
गाँव (VILLAGE)6848
ग्राम पंचायत (GRAM PANCHAYAT)6222
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